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लेखनी कहानी -10-Jan-2023 मुहावरों पर आधारित कहानियां

29. श्री, सुनो ना 

इस रचना में "आम के आम और गुठलियों के दाम" कहावत का प्रयोग किया गया है । 

26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के दो कार्यक्रमों में सहभागिता कर घर को आया ही था कि श्रीमती जी बोलीं "आप तो सेवानिवृत्त होने के बाद पहले से ज्यादा व्यस्त हो गये हो । हमारे लिए तो अब वक्त ही नहीं है आपके पास" । 

जब जब श्रीमती जी ऐसी मीठी झिड़की पिलाती हैं तब तब मुझ पर एक नशा सा छा जाता है । वे कुछ भी पिलाऐं, सबमें नशा ही नशा है । वो चाहे नशीले नैनों की मदिरा हो या फिर जली कटी बातों का सूप । सब कुछ कमाल का होता है उनका । ऐसी मीठी झिड़कियां सुनने के लिए बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं तब कहीं जाकर यह नशा मिल पाता है । 

मैं हाथ मुंह धोकर सीधा खाने की मेज पर आ गया । क्योंकि मुझे पता था कि अब "मीठी झिड़की" नहीं "तेज तर्रार लाल मिर्च वाला भुरता" मिलने वाला है । चुपचाप बैठकर भोजन करने लगा । 
"ऐसे सीधे बच्चों की तरह मेरी हर बात मान लिया करो तो आपका जीवन सफल हो जाये" आकाशवाणी की तरह श्रीमती जी की स्वर लहरियां गूंजने लगीं । 
हम जानते थे कि जब आकाशवाणी की स्वर लहरियां गूंज रही हों तो हमें बीच में कोई "राग" नहीं छेड़ना चाहिए वरना वे स्वर लहरियां कब नागपाश में परिवर्तित हो जायें, कुछ पता नहीं है । और आज तो उनकी "मेहरबानी" कुछ ज्यादा ही हो रही थी । 
"आपकी लेखनी तो मेरी सौतन बन गई है" । अगला अस्त्र छूटा जिसकी मार से हम खुद को बचा नहीं सके । चुप रहने में ही भलाई है, यही सोचकर चुप रह गये । 
"वैसे तो सारी दुनिया से बतियाते हो पर मुझसे बातें करने में जोर आता है । क्यों है ना" ? तीरों की बरसात लगातार हो रही थी । 

अभी तो और न जाने कितने अस्त्र शस्त्र चलते पता नहीं, मगर डोरबैल ने बचा लिया । कभी कभी तो ये डोरबैल यमदूत सी लगती है पर इसने आज तीरों की बरसात में ढाल का काम किया है । 
"कौन" मैं बोला 
"कूरियर वाला" वीडियो डोर फोन में उसका चेहरा भी दिख रहा था । 
आजकल पौत्र शिवांश के लिए कुछ न कुछ आता ही रहता है इसलिए मैंने सोचा कि शिवांश का कोई नया खिलौना आया है , बेटे को उसे लाने भेज दिया । 
बेटे ने पैकेट खोला तो उसमें से एक पुस्तक निकली "श्री, सुनो ना" किसी मीना राज की लिखी हुई थी । मैंने अपने दिमाग के सारे घोड़े दौड़ा लिए पर इस नाम की कोई लेखिका मुझे याद नहीं आई । तब मैंने सोचा कि किसी ने पढने के लिए भेज दी होगी । आजकल लेखक लोग ऐसा कर रहे हैं । 

भोजन समाप्त कर जब मैंने किताब खोली तो मैं दंग रह गया । उसमें लिखा था "आदरणीय सर, मैंने आपसे लिखना सीखा है । आपसे सीख सीखकर ही मैं कुछ लिखने का साहस जुटा सकी हूं और जो कुछ लिखा है उसे इस पुस्तक में समेट लिया है । इस पुस्तक की प्रथम प्रति आपको भेंट कर रही हूं । कृपया इसे स्वीकार कर मुझे आशीर्वाद देने का श्रम करें । आपकी शिष्या, अनन्या श्री" । 

ये शब्द पढकर दिल गर्व से भर गया । इतना आदर इतना सम्मान तो मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था जितना अनन्या जी ने मुझे प्रदान किया था । उस दिन मुझे पता चला कि अनन्या श्री जी का एक नाम और है जिससे हम लोग आज ही जान सके हैं और वह नाम है "मीना राज" । क्या पता और भी कई नाम हों ? ये तो आगे आने वाला वक्त ही बतायेगा । हमें तो आज पता चला है कि अनन्या जी हमें अपना गुरू मानती हैं । एक गुरू के लिए इससे बड़ी उपलब्धि और क्या होगी कि उसकी शिष्या एक बहुत बड़ी लेखिका बन जाये । 

जब किताब पढना शुरू किया तो "आभार" वाले पृष्ठ पर "काफी सारे लेखकों को पढा, सबसे ज्यादा श्री गोयल सर को पढती थी और फिर उन्हीं की प्रेरणा से लिखना शुरू किया । लेखन के मंच से काफी लोगों द्वारा सराहना मिली पर लेखन की बारीकियों पर मेरे आदर्श आदरणीय श्री हरिशंकर गोयल सर ने काफी मदद की । उन्हें पढकर एकलव्य की तरह मन ही मन मैंने उन्हें अपना गुरू मान लिया । आज जो कुछ मैं लिख पाई हूं, सिर्फ उनकी बदौलत" पढकर आत्मा तृप्त हो गई । मुझे लगा कि मैं आसमान में बैठा हुआ हूं । अनन्या जी ने मेरा व्यक्तित्व बहुत विराट बना दिया है जबकि मैं एक बहुत ही तुच्छ प्राणी हूं । अनन्या जी ने न केवल मेरे बारे में इतना लिखा अपितु यह पुस्तक भेजकर मुझे मालामाल कर दिया । मेरे लिए तो "आम के आम और गुठलियों के दाम" वाली बात हो गई । 

ये अनन्या जी का एक महान व्यक्तित्व ही है जो एक तुच्छ व्यक्ति को इतना मान दे रही हैं । हमारे ग्रंथों में लिखा गया है "विद्या ददाति विनयम्" । जो जितना बड़ा लेखक होगा , वह उतना अधिक विनम्र भी होगा । विनम्रता का गुण लेखकों को और ज्यादा महान बनाता है । सभी लेखकों को विनम्र होना ही चाहिए । 

मुझे सन 2020 का वह प्रथम लॉकडाउन याद आ गया जब कोरोना के कारण पूरे देश में लॉकडाउन लगा हुआ था । तब मैंने टाइम पास करने के लिए लिखना शुरू किया था । मैं तब केवल अपने मित्रों से अपनी रचनाऐं शेयर करता था । तब एक मित्र ने मुझे "प्रतिलिपि" एप के बारे में बताया । यह अप्रेल की बात है । तब मैं अपनी रचनाओं को प्रतिलिपि पर शेयर करने लगा । तब मुझे पढने वाला वहां कोई नहीं था । धीरे धीरे लोग जुड़ते चले गए और कारवां बनता गया । 

मई के महीने से अनन्या जी ने मुझे पढना शुरू किया तो वे आज तक भी मुझे पढती हैं । यह मेरे लिए गौरव की बात है । बाकी बहुत सारे लोग तो अब मुझे पढना बंद कर चुके हैं । लोग जुड़ते हैं फिर अलग हो जाते हैं । अनन्या जी मेरी पहली "जबरी फैन" हैं जो आज मेरी "सुपरफैन" बन गई हैं । मेरी रचना पर सबसे पहले इन्हीं की टिप्पणी आती है । काश कि सभी को अनन्या जी जैसी शिष्या मिली होतीं । आज उन पलों की मधुर स्मृतियां उभर कर सामने आ गई हैं । 

मैं हृदय के गहनतम तल से आपको इस उपलब्धि पर हार्दिक बधाई देता हूं , अनन्या जी । आप हर वर्ष कम से कम एक पुस्तक अवश्य प्रकाशित करें । पूरी पुस्तक पढने  पर इसकी विस्तृत समीक्षा करूंगा । सभी से अनुरोध है कि इस पुस्तक को एक बार अवश्य पढें । 

सधन्यवाद  

श्री हरि 
28.1.2023 

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12 Comments

अदिति झा

03-Feb-2023 01:51 PM

Nice 👍🏼

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Hari Shanker Goyal "Hari"

03-Feb-2023 07:00 PM

💐💐🙏🙏

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Varsha_Upadhyay

01-Feb-2023 06:57 PM

Nice 👍🏼

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Hari Shanker Goyal "Hari"

02-Feb-2023 01:00 AM

धन्यवाद जी

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Mahendra Bhatt

01-Feb-2023 01:47 PM

👏👌

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Hari Shanker Goyal "Hari"

02-Feb-2023 01:00 AM

धन्यवाद जी

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